Ayodhya Ram mandir
Ayodhya Ram mandir

Ayodhya Ram Mandir की कहानी : जानिए पूरा इतिहास Ayodhya Ram Mandir के निर्माण का

बस कुछ ही दिन में  Ayodhya Ram Mandir की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी एक ऐसा दिन जिसका इंतजार 500 सालों से किया जा रहा था|ये हम सब जानते हैं कि बाबर ने साल 1528 में अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर गिरवा करर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया |

किसने बनाया था Ayodhya Ram Mandir?

लेकिन इसके पहले की बात कम लोग करते हैं और वो बात यह है कि भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने अयोध्या में श्री राम जी का मंदिर बनवाया अकेले अयोध्या में सीताराम के 3000 मंदिर थे कहा जाता है कि पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व इनमें से कई मंदिरों की हालत खराब होने लगी उ

सी दौरान उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या आए और उन्होंने यहां के कई मंदिरों को फिर से ठीक करवाया आने वाले कई सालों तक यह मंदिर यूं ही वहां बने रहे| फिर 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच युद्ध होता है 1528 तक बाबर की सेना अयोध्या पहुंच जाती है कहा जाता है कि तभी बाबर के कहने पर उनके सेनापति मीर बाकी ने उस मंदिर को तुड़वा करर उसकी जगह पर मस्जिद बनवाई जिसे बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया|

किसने बनाया था राम चबूतरा?:

इसके बाद 150 साल बीत जाते हैं कोई हलचल नहीं होती यह वो दौर था जब भारत में मुगल शासन की जड़ें काफी गहरी थी फिर साल 1717 यानी बाबरी मस्जिद बनने के तकरीबन 190 सालों बाद जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय कोशिश करते हैं कि मस्जिद और उसके आसपास वाली जगह उनको मिल जाए वो जानते थे कि हिंदुओं के लिए उस जगह के क्या मायने हैं क्या आस्था है |

जयसिंह के उस वक्त के मुगल शासकों से संबंध भी ठीक थे मगर वह ऐसा नहीं कर पाते लेकिन वो मस्जिद के पास ही एक राम चबूतरा बनवा देते हैं ताकि हिंदू वहां पर पूजा कर पाए यूरोपियन ज्योग्राफर जोसेफ स्टेफन थेलर जो खुद 1766 से 1771 के बीच इसी जगह पर थे उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में राम चबूतरा होने की बात की तस्दीक की थी ये वो वक्त था जब मुसलमान मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ते थे और हिंदू बाहर राम चबूतरे पर पूजा किया करते थे मगर मंदिर गिराए जाने के 250 सालों बाद भी हिंदू इसको भूले नहीं थे

 

हिंदू संगठनों ने किया राम मंदिर दावा:

1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने 1528 में राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी माना जाता है कि फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने भी मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियों के मिलने का जिक्र अपनी रिपोर्ट में किया था पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब अयोध्या रिविजिटेड में इस वाकए का जिक्र भी किया है इसके बाद 1838 में ब्रिटिश सर्वेयर मॉन्टिगो मेरी मार्टिन ने एक रिपोर्ट दी कि मस्जिद में जो पिलर्स हैं वो मंदिर से ही लिए गए हैं रिपोर्ट सामने आने के बाद काफी हंगामा हुआ हिंदुओ के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ-साथ पूजा भी होने लगी

 

अयोध्या मुद्दे पर सांप्रदायिक हिंसा की पहली घटना:

1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन में अयोध्या मुद्दे पर सांप्रदायिक हिंसा की पहली घटना दर्ज की गई थी। यह पहली बार था कि हिंदू समुदाय के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि मस्जिद हिंदू मंदिर के विध्वंस के बाद बनाई गई थी। उसके बाद भी 1855 तक हिन्दू और मुसलमान एक ही गजह पर पूजा और नमाज़ करते थे| 1855 के बाद मुस्लिम को अंदर जाने की परमिशन मिली पर हिन्दू औ को नहीं मिली उसके बाद मस्जिद के150 फ़ीट दूर राम के चबूतरे पर पूजा करनी सुरु करदी

बाबरी मस्जिद की दिवार का टूटना

इसके बाद 1885 में यानी आज से तकरीबन 138 साल पहले यह मामला अदालत पहुंचा उस वक्त निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी थी जिसे अदालत ने ठुकरा दिया | इसके बाद 1934 में अयोध्या में फिर दंगे होते हैं और इस दौरान बाबरी मस्जिद की एक दीवार टूट जाती है जिसे बाद में फिर बनवा दिया जाता है मगर वहां नमाज बंद हो जाती है

 

जब देश पर अंग्रेज की हुकूमत थी उस वक्त की पार्टी के एजेंडे में भी कहीं Ayodhya Ram Mandir नहीं था ना उस वक्त का संघ इतना मजबूत था मगर देश की जनता प्रभु राम के भक्त बाबर के मस्जिद बनवाने के 400 साल बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे थे इस बीच आता है साल 1947 1947 देश आजाद हो जाता है उस वक्त तक मस्जिद सिर्फ शुक्रवार को ही खुलती थी और राम चबूतरे पर भगवान राम की मूर्ति थी जहां लोग पूजा करते थे दे

श आजाद होते ही लोग ये मानने लगे थे कि हमें आजादी मिल गई है तो अब राम मंदिर बन ही जाएगा मगर उस वक्त के किसी बड़े नेता की बातों से ऐसा नहीं लगता कि व राम मंदिर बनाने या उसकी लड़ाई को लेकर गंभीर थे

23 दिसंबर 1949 की घटना:

1949 में कुछ ऐसा हुआ जिसने बहुत सारे लोगों को हैरान कर दिया 23 दिसंबर 1949 की सुबह विवादित ढांचे के अंदर से घंटियों की आवाज आने लगती है पता लगता है कि वहां श्री राम जी की पूजा हो रही है हिंदू पक्ष दावा करता है कि बीते रात अचानक मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति प्रकट हो गई मुस्लिम पक्ष कहता है कि मूर्ति को रात के अंधेरे में जबरन रखा घटना की जानकारी मिलने के बाद दोनों पक्ष के लोग भारी तादाद में वहां जुटने लगते हैं

मामला इतना बढ़ जाता है कि बात उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास चली जाती है वो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के के नायर को आदेश देते हैं कि मूर्ति को वहां से हटाकर पहले जैसी स्थिति बहाल की जाए जिस पर केके नायर हाथ खड़े कर देते हैं

उनका कहना था कि यहां इतनी भीड़ है कि अगर मूर्ति हटाई गई तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी उसके बाद 27 दिसंबर को केके नायर के पास दूसरी चिट्ठी आती है और उनसे फिर से वैसा ही करने के लिए कहा जाता है जिसके जवाब में सरकार को यह सलाह देते हैं कि मूर्ति को हटाने की बजाय वहां जाली नुमा गेट लगा दिया जाए कहते हैं नेहरू जी को यह बात पसंद आती है और वो ऐसा करने के लिए उनसे उन लोगों से कहते हैं

 

इसके बाद 1950 में हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की इसके बाद अगले 35 सालों तक हिंदू पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने-अपने तरीके से उस जगह को अपने हवाले करने का दावा अदालत में करते हैं

1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम करके यह लोग Ayodhya Ram Mandir के लिए सीतामढी निकालने का भी कार्यक्रम बनाते हैं मगर 1984 में इंदिरा गांधी जी की हत्या के बाद यह कार्यक्रम टाल देते हैं फिर आता है साल 1986 तब कुछ ऐसा होता है जिसके बाद राम मंदिर आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल जाती है राजीव गांधी जी बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा करर वहां पूजा अर्चना शुरू करवा दे अब राजीव सरकार के इस फैसले से मुस्लिम नाराज हो जाते हैं और 6 फरवरी 1986 1986 को मुस्लिम लीडर्स मिलते हैं और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बना देते हैं

सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10000 किमी की रथ यात्रा :

इसके कुछ सालों में लालकृष्ण आडवाणी जी सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10000 किमी की रथ यात्रा निकालते हैं रथ यात्रा के दौरान बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया जाता है फिर जिस दिन अयोध्या में रथयात्रा का समापन होना था उस दिन बहुत बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे पर झंडा फहरा देते हैं भीड़ को काबू करने की कोशिश में उस वक्त की  सरकार का कार सेवकों पर गोलियां चलवा देती है जिसमें कई कार सेवक शहीद हो जाते हैं

बाबरी मस्जिद की कहानी:

इसके बाद आता है व दिन जिसे बहुत सारे लोग सौर्य दिवस और बहुत से लोग काला दिवस के तौर पर मनाते हैं तारीख थी 6 दिसंबर 1992 2 लाख कार सेवक अयोध्या पहुंच जाते हैं उस वक्त कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे और पीवी नरसिंहा राव देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कार सेवकों के वहां पहुंचने से पहले कल्याण सिंह ने अदालत को यह भरोसा दिया था कि वो ढांचे को कोई नुकसान नहीं होने देंगे साथ ही यह भी कहा जाता है कि कल्याण सिंह ने पुलिस को भी ये आदेश दिए थे कि वो भीड़ पर गोली ना चलाए लेकिन इतने सारे लोगों के वहां पहुंचने के बाद वही हुआ जो होना था

6 दिसंबर 1992 1992 को दोपहर 1:5 5 पर पहले एक गुंबद गिराया गया फिर डेढ़ घंटे बाद दोपहर 3:30 बजे के करीब दूसरा गुंबद गिराया गया और शाम 5:00 बजे तक तीनों गुंबद गिरा दिए गए इस घटना के महज डेढ़ घंटे बाद यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया कल्याण सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया इसके बाद हुए दंगों में तकरीबन 1000 लोगों ने अपनी जानें गवाई मुंबई में हुए सांप्रदायिक दय दंगों में भी 900 लोगों ने अपनी जान बनवाई इसके 7 साल बाद तक अदालत में इस मामले को लेकर शांति छाई रही

 

एएसआई की रिपोर्ट:

90 के दशक में बीजेपी के दोबारा केंद्र में आने के बाद तमाम हिंदू संगठन Ayodhya Ram Mandir आंदोलन को लेकर फिर से अति सक्रिय हो गए पहले देशभर में चल रहे मामलों को एक जगह लाया गया बाद के सालों में एएसआई को आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस मामले की जांच करने को कहा गया ताकि पता लगाया जा सके कि वहां पहले क्या था

एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में ये साफ कह दिया कि जिस जगह विवादित ढांचा था उसके नीचे मिले अवशेषों से यह साबित होता है कि वहां पहले हिंदू मंदिर थे एएसआई की ये रिपोर्ट ऐसा पहला साइंटिफिक फैक्ट था जिसके बाद यह सच में साबित हो रहा था कि वहां हिंदू मंदिर ही था एएसआई की इसी रिपोर्ट को बेस बनाते हुए अदालत ने विवादित जमीन को राम जन्मभूमि ट्रस्ट निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्त बोर्ड में बराबर बांट दिया मगर तीनों ही पक्ष अदालत के इस फैसले से सहमत नहीं होते जिसके बाद 2011 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है मगर वहां भी सात सालों तक इसमें कोई सुनवाई नहीं होती

एक मेडिएशन पैनल बनाकर आपसी रजामंदी से मामले का हल निकालने की कोशिश होती है और जब उससे भी कोई फैसला नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट मामले से जुड़े सारे दस्तावेजों का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करने को कहता है फिर अगस्त 2019 में मामले से जुड़े सभी पक्षों की सुनवाई पूरी हो जाती है और उसी साल 9 नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ये फैसला सुनाती है कि विवादित जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को दे दी जाए फिर उसके बाद 5 फरवरी 2020 ट्रस्ट का गठन होता है और Ayodhya Ram Mandir निर्माण शुरू होता है|

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